नामकरण, जिसे नेमिंग से भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण हिन्दू रीति है जो नवजात शिशु को एक नाम देने का उत्सव करती है। सामान्यत: बच्चे के जन्म के 11 वें दिन को किया जाता है, और यह आचार सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व रखता है। एक नाम का चयन सामाजिक परंपराओं, ज्योतिषीय विचारों, या माता-पिता की पसंद के अनुसार किया जा सकता है। नामकरण समारोह में, परिवार के सदस्य और दोस्त नवजात को आशीर्वाद देने के लिए इकठ्ठा होते हैं और चयनित नाम की आधिकारिक घोषणा करते हैं। इस रीति में पूजाएँ, आशीर्वाद, और कभी-कभी शिशु के समृद्धि के लिए सकारात्मक ऊर्जा को आमंत्रित करने के लिए छोटे से हवन (पवित्र अग्नि की पूजा) शामिल हो सकती है। नामकरण न केवल परिवार और समाज में शिशु की पहचान स्थापित करता है, बल्कि इससे उनके जीवन की शुरुआत भी होती है जिसमें सांस्कृतिक महत्व और परिवारिक विरासत का एक नाम होता है। जातकर्म-संस्कार के बाद पाँचवाँ संस्कार नामकरण-संस्कार है, जिसमें लड़के या लड़की का नाम रखा जाता है। अन्य संस्कारों को लोग भले ही न करते हों, यह संस्कार इतने महत्त्व का है कि इसे घर-घर किया जाता है। नामकरण- संस्कार का महत्त्व क्यों है- इस सम्बन्ध में कुछ लिखना अप्रासंगिक न होगा।
The naming ceremony, is a significant Hindu ritual that celebrates the bestowal of a name upon a newborn. Typically performed on the 11th day after the child's birth, this ceremony holds cultural and spiritual importance. The selection of a name is often guided by astrological considerations, family traditions, or the preferences of the parents. During the Naamkaran ceremony, family members and friends gather to bless the infant and witness the formal announcement of the chosen name. The ritual involves prayers, blessings, and sometimes a small havan (sacred fire ceremony) to invoke positive energies for the child's prosperous future. Naamkaran not only establishes the child's identity within the family and society but also marks the beginning of their journey with a name that carries cultural significance and familial legacy. After Jaatkarma Sanskar, the fifth Sanskar is Namkaran Sanskar, in which the name of the boy or girl is kept. Even if people do not perform other rituals, this ritual is of such importance that it is performed in every home. Why is naming ceremony important? It would not be irrelevant to write something in this regard.
नामकरण-संस्कार का महत्त्व
किसी वस्तु का ज्ञान नाम के बिना नहीं होता-संसार का सब व्यवहार नाम के आधार पर ही चलता है। जबतक किसी वस्तु या प्राणी की संज्ञा नहीं होती' तबतक उसके सम्बन्ध में ज्ञान प्रत्ययात्मक (Perceptual) तो हो सकता है, परन्तु क्रियात्मक, व्यवहारात्मक तथा उपयोगात्मक (Conceptual) नहीं हो सकता। हमें गाय का ज्ञान है, घोड़े का ज्ञान है, परन्तु जबतक हम इस ज्ञान को कोई संज्ञा, कोई नाम नहीं दे लेते तबतक यह ज्ञान 'प्रत्ययात्मक' (Percep- tual) रहेगा, हर्मी तक सीमित रहेगा, हम इस ज्ञान का अपने व्यवहार में, दूसरे के बातचीत में प्रयोग नहीं कर सकेंगे। अगर इस ज्ञान को व्यवहार के लिये उपयोगी बनाना हो, तो इस 'प्रत्यय' (Percept) को कोई ऐसा नाम देना होगा जिसे दूसरा भी ठीक उसी तरह समझ सके जिस तरह हम उसे समझते हैं। दार्शनिक-परिभाषा में कहा जाए, तो हम कह सकते हैं कि बिना नाम या बिना संज्ञा का ज्ञान 'निर्विकल्पक-ज्ञान' है, संज्ञासहित या नामसहित ज्ञान 'सविकल्पक ज्ञान' है। हमारा व्यवहार निर्विकल्पक ज्ञान पर नहीं चलता, सविकल्पक ज्ञान पर चलता है। ज्ञान को सविकल्पक बना देने को ही नामकरण कहते हैं। क्योंकि बच्चे ने अपना सीमित संसार बना कर ही नहीं रहना, ऐसा संसार जिसमें वह इकला रहे, माँ-बाप, भाई-बहिन, समाज किसी के साथ उसका सम्बन्ध न हो, इसीलिये उसे एक संज्ञा, एक नाम देना आवश्यक है। संज्ञा देने के इस कार्य को-नामकरण को-वैदिक-विचारधारा में धार्मिक संस्कार का रूप दिया गया था। नामकरण-संस्कार को धार्मिक रूप देने का कारण-किसी वस्तु को पहचानने तथा उसके सम्बन्ध में दूसरों के साथ व्यवहार करने में उसको कोई- न-कोई नाम देना आवश्यक है, परन्तु क्या सिर्फ नाम दे देना ही काफी है। हमने जैसा कई बार लिखा है, संस्कार-पद्धति का उद्देश्य श्रेष्ठ-से-श्रेष्ठतर, उच्च-से- उच्चतर मानव का निर्माण करना है। इस दृष्टि से देखा जाए, तो हर-एक माता-पिता का कर्तव्य है कि सन्तान को ऐसा नाम दे, जो उसे हर समय जीवन के किसी लक्ष्य किसी उद्देश्य की याद दिलाती रहे। नामकरण, जिसे नेमिंग से भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण हिन्दू रीति है जो नवजात शिशु को एक नाम देने का उत्सव करती है। सामान्यत: बच्चे के जन्म के 11 वें दिन को किया जाता है, और यह आचार सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व रखता है। एक नाम का चयन सामाजिक परंपराओं, ज्योतिषीय विचारों, या माता-पिता की पसंद के अनुसार किया जा सकता है। नामकरण समारोह में, परिवार के सदस्य और दोस्त नवजात को आशीर्वाद देने के लिए इकठ्ठा होते हैं और चयनित नाम की आधिकारिक घोषणा करते हैं। इस रीति में पूजाएँ, आशीर्वाद, और कभी-कभी शिशु के समृद्धि के लिए सकारात्मक ऊर्जा को आमंत्रित करने के लिए छोटे से हवन (पवित्र अग्नि की पूजा) शामिल हो सकती है। नामकरण न केवल परिवार और समाज में शिशु की पहचान स्थापित करता है, बल्कि इससे उनके जीवन की शुरुआत भी होती है जिसमें सांस्कृतिक महत्व और परिवारिक विरासत का एक नाम होता है।
Importance of naming ceremony
There is no knowledge of any object without its name – all the dealings in the world run on the basis of name only. Unless an object or creature has a noun, the knowledge regarding it can be perceptual, but cannot be operational, behavioral and useful. We have knowledge of cow, we have knowledge of horse, but till we do not give any noun, any name to this knowledge, this knowledge will remain 'perceptual', will be limited to Hermi, we will use this knowledge in our behavior. , will not be able to be used in other's conversations. If this knowledge has to be made useful for practice, then this 'percept' will have to be given a name which others can understand in the same way as we understand it. In philosophical definition, we can say that knowledge without name or without noun is 'Nirvikalpak-knowledge', knowledge with or without noun is 'Savikalpak knowledge'. Our behavior is not based on non-selective knowledge, it is based on selective knowledge. Making knowledge optional is called naming. Because the child has not created his own limited world, a world in which he remains alone, has no relation with his parents, siblings or society, that is why it is necessary to give him a noun, a name. This act of naming – naming – was given the form of a religious rite in the Vedic ideology. Reason for giving religious form to naming ceremony - some object To recognize a person and to deal with others in relation to him, it is necessary to give him some name, but is it enough to just give him a name? As we have written many times, the aim of the culture is to create the best of the best, the highest of human beings. Seen from this point of view, it is the duty of every parent to give such a name to the child, which reminds him of some goal or purpose of life at all times. Naamkaran, also known as the naming ceremony, is a significant Hindu ritual that celebrates the bestowal of a name upon a newborn. Typically performed on the 11th day after the child's birth, this ceremony holds cultural and spiritual importance. The selection of a name is often guided by astrological considerations, family traditions, or the preferences of the parents. During the Naamkaran ceremony, family members and friends gather to bless the infant and witness the formal announcement of the chosen name. The ritual involves prayers, blessings, and sometimes a small havan (sacred fire ceremony) to invoke positive energies for the child's prosperous future. Naamkaran not only establishes the child's identity within the family and society but also marks the beginning of their journey with a name that carries cultural significance and familial legacy.
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